क्या कुछ नहीं किया हमने तेरे लिए ए जिन्दगी
फिर भी तुम्हारे तेवर यूँ ही बिगड़े रहे उम्र भर! !
बेबसी में इस कदर जीते रहे हैं
कैसी कैसी यातना सहते रहें हैं
अश्क़ छलके आँख से जब भी
जाम उनको जानकर पीते रहे हैं! !
जिन्दगी में सुंकू मिले हमेशा ये चाहत रखना
हरेक काम से पहले खुदा की इबादत करना! !
कौन कब कायनात मांगी थी
सिर्फ गम से निजात मांगी थी
या खुदा मेरे हिस्से सिर्फ आंसू
हमने तो थोड़ी पनाह मांगी थी! !
जब से गमों पर मुस्कराना आ गया
जिन्दगी जीने का बहाना आ गया! !
ये चेहरा भी एक आइना है दास
गौर से देखो तो समझ आएगा! !
एक समंदर की लहर सी जिन्दगी
कभी खुशी कभी कहर सी जिन्दगी
चंद लम्हों में पलट जाती है दास ये
अब अमृत तो फिर जहर सी जिन्दगी! !
वही हंसना वही रोना वही खाना वही पीना है
जिन्दगी भी मानो कोई चाबी भरा खिलौना है
भाता है बहुत जब तलक जी नहीं भरता दास
वरना हर रोज कोई नया कांटों का बिछोना है! !
पल में तोला पल में माशा है जीवन खेल तमाशा है
कोई नहीं पढ़ सकता इसको एक अनोखी भाषा है
इतनी सहूलियत हो गईं हैं जिन्दगी में आज तो
जो आदमी थे काम के वो भी निकम्मे हो गए!

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




