नम्र शख्श
विनम्र आंखें
धुंधली शख्शियत
इज्जत मिलती नहीं
बिना कुछ गलत किये
झुका हुआ सिर लेकर
चलता रहा वह शख्श
एकाएक विशेष बन गया
बना नहीं बना दिया गया
समाज के चार शख्सों ने
जो दिखते तो नहीं
पर होते हैं कहीं न कहीं
मामला कुछ यूँ हुआ
बिटिया को भेजा पढ़ने
पढ़ी लिखी अध्भुत अपार
बस कर बैठी किसी से प्यार
वह शख्श जो शांत रहा करता था
शांत आज भी वैसे ही था
बिटिया प्यारी प्यार भी प्यारा
सबका किया तिरस्कार
और होगया समाज से बहिस्कार
इनके जैसे ऐसे वैसे?
कहाँ कहाँ और क्या क्या?
किसने किसने - कितने कितने?
ताने जाने दे मारे थे
वह पिता समर्थ
बिटिया भी समर्थ
सब झेल गए ताने बाने
झुका हुआ सिर
विनम्र स्वभाव
पलट कर जवाब न देना
इसी से सब संभव होपाया
'क्युकी'
लोगों को कहने का मौका नहीं मिला
देखो "अब कैसे सिर झुकाकर निकल रहा है"
----फ़िज़ा