कोई देश बांटता है।
कोई भेष बांटता है।
कोई जाती धर्म
तो कोई संदेश बांटता है।
असल में देश की किसी
को कोई चिंता हीं नहीं है।
ये कुर्सी इतनी रसीली
की इसकी हर कोई बस
रस पीना चाहता है।
हर कोई राजनीति में
लिप्त संलिप्त तृप्त होना
चाहता है।
असल में ना कोई सवाल है।
ना हीं कोई मुद्दा है।
बस येन प्रकेन कुर्सी मिल जाए
क्योंकि राजनीति अब एक धंधा है।
आम आवाम तो सच में आम है।
जिसके रस चूस लिए जातें हैं
और उसके गुठलियों के भी दाम
ले लिए जातें हैं।
और आम आवाम भी कम कुछ नहीं हैं
रेवड़ियों की राजनीति में हर पल
बिकती हैं।
रस देख मक्खियों की तरह भिनकती हैं ।
पार्टियां बनतीं हैं जीततीं हैं और राज करतीं हैं और आम आवाम बस हाथ मलती हैं
आम आवाम सिर्फ़ हाथ मलती हैं...

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




