ख्वाब ही में रहे और जिंदगी फिसल गई।
चाहत कुलबुलाती रही जान निकल गई।।
प्यार अपार रहा और दूरी सिसकती रहीं।
ज़माना क्या कहेगा ज़मी बर्फ पिघल गई।।
जिन राहो पर चले दुख दर्द बिस्तरे बनाए।
छांव पेड़ की मिली दिशा मेरी बदल गई।।
तन्हाई से वास्ता रहा 'उपदेश' सोच में रहे।
मोहब्बत कायम रहीं सम्पत्ति अचल गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद