वाह रे मेरे देश के नेता
जो गरीबों की लड़ाई
लड़ते लड़ते ख़ुद अमीर हो
जातें हैं।
और गरीबों के हालात को तो
आप सभी जानतें हैं।
कोई चाय बेचता था
कोई पंक्चर बनाता था
कोई कुश्ती लड़ता था
तो कोई सिनेमा का
टिकट ब्लैक करता था
पर येन प्रकेन करके
जब नेता बनते हैं
तो लिख लोढ़ा पढ़ पत्थर भी
बड़े बड़े नेशन क्या कहें
इंटरनेशन विश्विधालयों में
व्याख्यायन देते हैं।
पढ़े लिखे स्कॉलरों को
डिग्रियां बांटते हैं।
बड़े बड़े अर्थशास्त्रियों को
अर्थ समझातें हैं।
अंगूठाछाप पाकिटमार भी
बाहुबली बन जातें हैं।
लोगों के सांसों पर टैक्स क्या कहें
खून भी चूस लेते हैं।
संसद के सारे सत्र व्यर्थ में गंवाते हैं।
क्या मजाल की कोई कुछ मांग ले
नेता उस आम आदमी को उल्टा
टांग दे।
अपने ऐयाश बाल बच्चों को तो
विदेशों में बसातें हैं और गरीबों के बच्चो को शिक्षा लोन बांटते हैं।
करोड़ों रूपये खर्च कर देते
पर गरीबों का अब तक ना उत्थान हुआ।
बस नेता उनके चेले सिर्फ़ उसके ही परिवार
का संपूर्ण विकास हुआ।
गरीब आदमी गरीब हीं रहा
बस उसका तिरस्कार हुआ।
बस सपनों के सौदागर बन
सपना दिखाते हैं।
भोली भाली जनता को ख्याली
जन्नत दिखाते हैं।
वह रे मेरे देश के नेता
कुर्सी से चिपक जातें
लोक तंत्र का मज़ाक बना
अपने हीं रिश्तेदारों को
नेता बनातें हैं।
सारा संविधान आम आदमी
पे हीं लगातें हैं।
हाय रे मेरे देश के नेता
नेता कम अभिनेता बन जातें हैं।
भोली भाली जनता को
बन बहरूपिया भाती भांति के
रंग दिखाते हैं।
धरातल पर कुछ नहीं
बस ख्याली पुलाव पकातें हैं।
और इलेक्शन के बाद
हक़ीक़त वाली पुलाव ख़ुद खाते हैं
और जनता को मेमना समझ
खुद शेर बन जातें हैं
अच्छे अच्छों को खा जातें
डकार नहीं मारते हैं।
आम आदमी को आम बना
ख़ुद चूस चूस खाते हैं।
और जनता के पैसों से
विदेशों में घूमने जाते हैं।
और जनता करे भी तो क्या
बस नेता जी के आगे
गिड़गिड़ातें हैं।
फ़कीर नेता अमीर
और गरीब आम जनता लोग
फकीर बन जातें हैं।
बस कुछ पाने की लालच में
नेता जी की जय जयकार
लगातें हैं।
और नेता जी उन्हीं को लूट
खुद तोंद फूला खा
रुख सुखी इनको थमाते हैं।
देश विदेश बंगला अटारी बना
आम जनता को देश भक्ति सिखातें हैं।
आम जनता पर खर्च से देश बरबाद
होता है ये तर्क समझाते हैं।
जनता की टैक्स के पैसों को
खुद खा जातें हैं।
वाह रे मेरे देश के नेता
आप तो खुदे भगवान बन जातें हैं..
आप तो खुदे भगवान बन जातें हैं..

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




