चांदनी रात की चादर ओढ़े
झूठ कैसे चमक रहा
और न जाने क्यूँ
सच अंधेरे कोने में दुबक रहा
झूठ कैसे गरज गरज कर
काले बादल फैला रहा
पर उसमें बिजली बनकर
सच कैसे चमक रहा
झूठ का कितना शोर है
झूठ के साथी अनेक
सच का ना साथी कोई
सच तो है बस एक
झूठ कितना भी शोर मचा ले
फिर भी डंका देखो तो
सच का ही बज रहा
झूठों की तो नगरी है
झूठों का संसार है
सच का कोई ना साथी
झूठों की भरमार है
झूठों की इस नगरी में भी
सच अपनी जगह बना रहा
झूठ लगता बहुत ही सुंदर
झूठ बहुत ही मीठा है
सच तो है बदसूरत
सच बहुत ही कड़वा है
झूठ के तो रंग अनेक
ये हर पल रंग बदलता है
सच का बस एक रंग श्वेत
ये उसी पर कायम रहता है
सीमा चतुर्वेदी 'असीम'