"ग़ज़ल"
जन्मों से मैं हूॅं तुम पे फ़िदा मैं जानूॅं या तू जाने!
मेरे इश्क़ की उम्र है क्या मैं जानूॅं या तू जाने!!
मर्ज़-ए-मोहब्बत समझ न आए सभी वैद्य बुलाऍं!
है दर्द-ए-दिल की तू ही दवा मैं जानूॅं या तू जाने!!
नाम तेरे मैं धड़कन कर दूॅं ये दिल तुझ को अर्पण कर दूॅं!
यही है मेरे दिल की सदा मैं जानूॅं या तू जाने!!
ये जन्म जन्म का प्यार है सदियों का इन्तज़ार है!
किस को ख़बर है? किस को पता? मैं जानूॅं या तू जाने!!
गर ख़ता है दिल का लगाना तो 'परवेज़' ख़तावार!
ये ख़ता भी है या ख़ुद है ख़ुदा मैं जानूॅं या तू जाने!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad