सिर्फ हर्फ़ नहीं, मानी को चाहता है,
किरदार अपनी कहानी को चाहता है।
लुटा दिया अपना सल्तनत उसपे ही,
राजा ऐसे अपनी रानी को चाहता है।
उसकी आँखें, किसी को देखती नहीं,
वो दीवाना जो दीवानी को चाहता है।
एक फूल दिया था उसने मुहब्बत में,
जान से ज्यादा निशानी को चाहता है।
मैं भी उसे कुछ इस तरह चाहता हूँ,
जैसे कोई प्यासा पानी को चाहता है।
🖊️सुभाष कुमार यादव