आज़ादी का पर्व ये ऐसे ही न आया है,
कई शीश कटे, कई रक्त बहे, कइयों ने लाल गंवाया है,
तब जाकर के कहीं इस आसमान में अपना तिरंगा लहराया है...!
@कमलकांत घिरी
New रचनाकारों के अनुरोध पर डुप्लीकेट रचना को हटाने के लिए डैशबोर्ड में अनपब्लिश एवं पब्लिश बटन के साथ साथ रचना में त्रुटि सुधार करने के लिए रचना को एडिट करने का फीचर जोड़ा गया है|
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तब जाकर के कहीं इस आसमान में अपना तिरंगा लहराया है...!
@कमलकांत घिरी