आजादी का जश्न चल रहा।
मंहगाई पर अमल चल रहा।।
अंधेरे में बैठाकर रोशनी की।
बात का सिलसिला चल रहा।।
पक गये जुमले सुन सुनकर।
कर दे देकर हर घर चल रहा।।
कुछ जुगनू मुट्ठी में कर रखी।
छोड देने का वक्त बदल रहा।।
मन मार कर 'उपदेश' रहना।
आजादी का सूरज ढल रहा।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद