आज वो किसी का घर उजाड़कर अपना घर बना रहा है
आज वो किसी का घर उजाड़कर अपना घर बना रहा है,
आज वो किसी को रुलाकर बड़ा हॅंस रहा है।
उस नादान की हॅंसी सुन मैं भी हॅंसने लगी
आज वो जिस घर को बनाकर हॅंस रहा है, कल उसका वो घर भी उजड़ेगा
कल वो नादान भी रोयेगा।
आज वो किसी का घर उजाड़कर अपना घर बना रहा है,
वो नासमझ समझता नहीं कि वो क्या कर रहा है।
उसके इस किये की सजा
भगवान उसे ज़रूर देगा,
और तब वो पश्चाताप की आग में जलेगा।
आज वो किसी का घर उजाड़कर अपना घर बना रहा है,
किसी के सपनों को तोड़ अपने सपनों को सज़ा रहा है।
उस कमबख़्त की नियत तो देखो,
किसी की ज़िंदगी में दुःखों का सैलाब भर
उसकी खुशियों से अपना दामन सजा रहा है।
~ रीना कुमारी प्रजापत