खुदा का कितना ख़ास है आदमी
कायनात को खराब करता है आदमी
लिख ली खुदा की वसीयत अपने नाम
बस लिखना पढ़ना जनता है आदमी
खुद से मिला नहीं आजतक कभी
सुना है कि खुदा की लताश में है आदमी
कर दिया है बरबाद असमान, समंदर और धरती
किस बात का बदला खुदा से लेता है आदमी
कही मंदिर, कही मस्जिद कही गुरूद्वारे तोड़ता है
अपने घर बचा कर खुदा के घर क्यों तोड़ता है आदमी
कुदरत भी जानती है अश्लियत आदमी की
एक न एक दो मिटा ही देगी हस्ती ए आदमी