गुजर गई ज़िन्दगी आधी
चीज़ों को सुलझाते सुलझाते
खुद को समझाते समझाते
फिर भी कुछ बातों ने
मुँह मोड़ रखे है
ज़िन्दगी के बहुत से पन्ने
खाली छोड़ रखें है
वक़्त आने पर सब ठीक हो जायेगा
यही आस मन मे लिए
गुजर गई ज़िन्दगी आधी
तालाब के पानी की मानिंद
ना बह पाये ना सूख पाये
बस इसी उधेड़ बुन मे ज़िन्दगी गुजर जाये
शायद कल सब ठीक हो जाये
सूरत भी बदल गई
सीरत भी बदल गई
अस्तित्व की मूरत ही बदल गई
ज़िन्दगी आधी गुजर गई
ज़िन्दगी की उलझनों को सुलझाते सुलझाते
खुद को समझाते समझाते
सोचा था ज़िन्दगी के पन्नों पर
ये सब लिखूंगा पर
लिखते लिखते स्याही बदल गई
कलम बदल गई
वक़्त ने ऐसी करवट बदली
ज़िन्दगी ही पूरी बदल गई
और ज़िन्दगी आधी गुजर गई...
----गोविन्द सेंगल

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



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