आँधी आते ही पहुँचते पेडो के आस-पास।
गिरे फल उठाते चुन-चुन कर खास-खास।।
मौसम के मिज़ाज से वाकिफ न थे उसूल।
गरीबी के आलम मे सुझाए न पीस-वीस।।
अपना हिस्सा खोजते रहते हम दर-बदर।
जो भी मिला 'उपदेश' कुबूल खुश नाखुश।।
- उपदेश कुमार शाक्यवार 'उपदेश'
गाजियाबाद