Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.

Show your love with any amount — Keep Likhantu.com free, ad-free, and community-driven.



The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

Newहैशटैग ज़िन्दगी पुस्तक के बारे में updates यहाँ से जानें।

Newसभी पाठकों एवं रचनाकारों से विनम्र निवेदन है कि बागी बानी यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करते हुए
उनके बेबाक एवं शानदार गानों को अवश्य सुनें - आपको पसंद आएं तो लाइक,शेयर एवं कमेंट करें Channel Link यहाँ है

The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

वो उदास मुस्कान - प्रथम भाग - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

वो उदास मुस्कान - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'
भारत के नक़्शे में एक छोटे से तिनके के बराबर का एक गाँव माधवगढ़ भी था। शहर के कोलाहल से सुदूर गाँव का वातावरण शांत, प्रिय एवं खुशहाल था।हँसते, मुस्कुराते, खिलखिलाते बच्चे, दौड़ते, कूदते, पढ़ते युवा, ज्यादातर खेतों में काम करने वाले वयस्क,चौपाल की रौनक बढ़ाते वृद्धजन एवं गाँव को तरह तरह के रंगों के साथ साथ खिलखिलाती मुस्कान और हावभावों से सजाती हुयी युवतियां एवं स्त्रियां, इन सबसे गाँव का माहौल एकदम खुशनुमा रहता।

आसपास के गाँव टीकमगढ़, सुल्तानपुर, राना, रनिहाल, हस्तपुर और इनसे थोड़ा दूर के गाँव भी सभी लगभग इसी रंग के थे।

कहानी की पृष्ठ्भूमि माधवगढ़ से शुरू होती है, जहाँ के माहौल में बच्चे पढ़ लिखकर कुछ बन जाने की चाह रखते थे, माता-पिता खुद मेहनत करके बच्चों को पढ़ा लिखाकर खेती किसानी से दूर रख कुछ हासिल करलें ऐसा चाहते थे, वहीँ बुजुर्ग अपने आशीर्वाद एवं सीख से बच्चों को सही मार्ग दिखाने के लिए तत्पर नजर आते थे।


जिस तरह चाँद में भी दाग होता है, उसी तरह माधवगढ़ के बहुत ही सज्जन एवं संपन्न परिवार के मुखिया शिवपाल जी के मात्र एक ही संतान थी - उनका सोलह वर्ष का पुत्र रजत, अन्य बच्चों के विपरीत पढ़ने लिखने से दूर कहीं कला में खोया खोया रहने वाला।

शिवपाल जी, उनकी धर्मपत्नी सुलेखा जी और शिवपाल जी के पिताश्री अमरनाथ जी को रजत की बड़ी फ़िक्र रहती कि पढ़ाई लिखाई से दूर रहते हुए खेती क्यारी के ज्ञान से अनभिज्ञ यह बच्चा क्या हासिल कर पाएगा और जीवन यापन किस प्रकार होगा।

शिवपाल जी और परिवार के अन्य सदस्यों की यह फिक्र जायज थी, जहाँ गाँव के अन्य माता-पिता अपने बच्चों को डॉक्टर, इंजीनियर, अधिकारी बनाने की ख्वाहिस रखते थे और उनके बच्चे उस सब पर काम कर रहे थे, वही शिवपाल जी को बस यही चिंता रहती कि भले ही रजत डॉक्टर, इंजीनियर अथवा अधिकारी न बन सके लेकिन अपने जीवन यापन लायक कुछ हासिल कर पाएगा या नहीं।

उधर रजत स्कूल से लगाव होने के बाद भी अपनी कक्षा के अन्य विषयों को छोड़कर कला, साहित्य एवं अन्य अतिरिक्त कलात्मक गतिविधियों में मग्न रहता। जैसे तैसे करके हर वर्ष की परीक्षा में पास हो पाता।
लेकिन उसे इस सब की कोई फ़िक्र नहीं थी, जैसे वो खुद को कला को समर्पित कर चुका हो।

बारहवीं उत्तीर्ण करने के बाद बी.ए. में एडमिशन लेने की चाह घर वालों के सामने जब रखी, तो घरवालों ने एक बार पुनः समझाया की विषयों को बदल कर बी. ऐस. सी. या अन्य विज्ञानं या गणित विषय के कोर्स में दाखिला दिला दिया जाए। लेकिन रजत ने बड़ी विनम्रता से कहा मेरी इन विषयों में रूचि नहीं है, होसकता है दाखिला लेने के बाद में कोर्स को पूरा ही न कर पाऊं। घरवालों ने भी रजत की ख़ुशी को देखते हुए उसकी पसंद के कोर्स में शहर के विश्वविद्यालय में दाखिला करवा दिया।

शहर का नाम उदयपुर जो माधवगढ़ से काफी दूर था। वो शहर जो गाँव से बिलकुल भिन्न, जिसका हर पहलू गाँव के विपरीत था, जिसकी आवो हवा में भीड़ थी, जहाँ लगभग सब एक दूसरे से अनजान थे।
मगर रजत को उस शहर में घुलने मिलने में जरा भी समय नहीं लगा।
वो उदास मुस्कान - अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'

आखिर शहर हो क़स्बा हो या फिर गांव हो हर जगह कला एवं साहित्य जीवंत रहता ही है, तो रजत को उसी कला एवं साहित्य में घुलने मिलने में झिझक कैसे होती? दिन व्यतीत हो रहे थे, विश्वविद्यालय में रजत का मन रम गया था, मानो वो कोई आज़ाद परिंदा हो जिसको उसका आसमान साफ़, स्वछंद और खुला हुआ मिल जाए।

कमरे से विश्वविद्यालय जाना और वापस आना एक नियमित सिलसिला था जिसमे ऑटोस्टैंड से शेयरिंग ऑटो का इस्तेमाल कर रजत विश्वविद्यालय आना जाना करता था। पिछले कुछ दिनों से उसी ऑटोस्टैंड पर रजत की निगाहें एक लड़की पर रुक जातीं, जो नियमित नियत समय पर वहीँ ऑटो का इंतज़ार कर रही होती थी, लड़की उसकी हम उम्र ही थी।

रेशमी सुनहरे बालों वाली वह लड़की, जिसके चेहरे पर उदासी छायी हुयी रहती जैसे कहीं ग़ुम शुम सी हो, जैसे कुछ छूट रहा हो, जैसे चित्रकार की चित्रकारी पूरी तो होगयी हो लेकिन देखने वाले लोगों ने उसे सराहा न हो, जैसे किसी नासमझ इंसान ने गुलाब के फूल को भगवान् की पूजा के लिए कांटे लग जाने की वजह से उसकी टहनी से अलग करना उचित न समझा हो, जैसे शहर की रौशनी में चाँद की चांदनी को देखने की किसी को न पड़ी हो। ऐसे हाव भाव चेहरे पर रखने वाली लड़की को रजत एक दो क्षण प्रतिदिन देख रहा था।

लेकिन आज विश्वविद्यालय से लौटने के बाद कमरे पर जब आया तो रजत बहुत विचलित था, उसकी आँखों के सामने उसी लड़की की तस्वीर तैर रही थी, वही उदास चेहरा उसके मन को विचलित कर रहा था, उसकी उदास आंखें जैसे रजत से कुछ कहना चाह रही हों, रजत को लगने लगा यह कला का वह पक्ष है, बहुत नायब है लेकिन जिसकी अवहेलना हो रही है। विचलित मन से रजत सारा दिन लड़की के बारे में सोचता रहा और रात को करवटें बदलते हुए सोने की कोशिश करने पर भी नींद नहीं आयी।

अगले दिन रविवार का अवकाश होने की वजह से विश्वविद्यालय नहीं जाना था तो रजत दोपहर तक सोता रहा। दोपहर को जागने के बाद नित्यकर्म से निवृत होकर उसने बाज़ार से कुछ आवश्यक वस्तुएं एवं स्टेशनरी लेकर आने के बारे में सोचा और कमरे से ताला लगाकर चल पड़ा।

ऑटोस्टैंड से ऑटो लेकर रजत पहले स्टेशनरी मार्केट पहुंचा। स्टेशनरी मार्किट में आज भीड़भाड़ बहुत थी यह अन्य रविवार के बिलकुल विपरीत था, थोड़ा अचम्भित सा रजत इधर उधर देखने लगा।थोड़ी ही देर में आसपास सुसज्जित बैनरों से ज्ञात हुआ, कि पास ही के एक गर्ल्स कॉलेज [विवेकानंद गर्ल्स एजुकेशनल कॉलेज] में आज राष्ट्रिय स्तर पेंटिंग प्रतियोगिता का आयोजन है, जिसमे अलग अलग शहरों,राज्यों से प्रतिभागी भाग लेने आये हैं साथ ही शहर भर से सभी कला प्रेमियों का वहां आवागमन जारी है।

रजत ने स्टेशनरी का सामान लेने के बाद में मार्केट के दूसरे हिस्से में जहाँ अन्य सामान मिलता था जाने का विचार किया ही था, कि यकायक उसके अंदर कलात्मकता की रूह जाग उठी और प्रतियोगिता देखने जाने का मन हुआ। स्टेशनरी सामान को उसी दुकानदार को बाद में वापस साथ लेजाने का कह उसके पैसे चुका कर उसी के सुपुर्द करते हुए, रजत विवेकानंद गर्ल्स एजुकेशनल कॉलेज के प्रांगण में पहुँच गया।

वहां बैठने की उचित व्यवस्था थी, कला प्रेमियों का ताँता लगा हुआ था और अभी भी लोग आये जा रहे थे, सामने एक विशाल स्टेज बनायी गयी थी जिसपर सभी प्रतिभागी अपने अपने कैनवास एवं अन्य पेंटिंग सामग्री के साथ आ चुके थे, प्रतियोगिता शुरू होने में अभी ३० मिनट का समय था, सभी प्रतिभागी प्रतियोगिता शुरू होने से पहले यह सुनिश्चित करने में लगे हुए थे कि सभी सामग्री उचित मात्रा में उपलब्ध है या नहीं या कुछ छूट तो नहीं रहा, कुछ विचलित दिखाई दे रहे थे, कुछ पानी के घड़े के पास जाकर पानी पानी पी रहे थे। तभी रजत की नज़र एक अन्य प्रतिभागी पर पड़ी जो एकदम शांत, प्रसन्न, अकेले और हर चिंगता से मुक्त जैसे प्रतियोगिता शुरू होने का इंतज़ार कर रही थी।


यह प्रतिभागी कोई और नहीं, वही लड़की उदास रहने वाली लड़की थी जिसे रजत ऑटोस्टैंड पर देखा करता था, जिसकी उदासी के बारे में सोच सोच कर वह कल पूरा दिन बेचैन रहा और रात में लाख करवटें बदलने के बाद भी उसे नींद नहीं आयी थी। रजत स्तब्ध था, मुस्कान से भरे हुए चेहरे के साथ उस लड़की के हावभाव भी बदले हुए थे, संयमित जैसे हमेशा की तरह, सादगी भी वही लेकिन ऊर्जा, चेहरे का तेज़ और मुस्कराहट ने रजत के मन में उस लड़की की दो छवियां बना दी थीं।

रजत मुस्कान से भरे हुए चेहरे की तुलना उस उदास चेहरे से करते हुए सोचने को मज़बूर था कि आखिर क्या वजह है कि इतनी प्यारी मुस्कान उसके चेहरे पर अन्य दिनों में क्यों नहीं होती है? यह ऊर्जा और तेज़ आज अचानक से उसके अंदर कैसे आगया? साथ ही इन सभी गुणों में सुसज्जित होने के कारण उसकी नयी छवि रजत के मन को और उसकी अंतरात्मा को थोड़ा सुकून पहुंचा रही थी। एक दो क्षण जिस चेहरे को देख रजत निराश होजाया करता था, आज उसी चेहरे को देखे थक नहीं रहा था, टकटकी बाँध कर उसे देखने के साथ साथ दोनों छवियों की तुलना में लीं रजत का ध्यान भंग करते हुए माइक पर प्रतियोगिता के प्रारम्भ होने की घोषणा हुई।

----अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र'


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


समीक्षा छोड़ने के लिए कृपया पहले रजिस्टर या लॉगिन करें

रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

Lekhram Yadav said

कहानी की बहुत सीधी सादी शुरुआत और व्यक्तिगत लक्ष्य, भावनाओं और अभिलाषाओं का एक सुन्दर चित्रण, सुप्रभात सहित सादर नमस्कार सर।

सरिता पाठक said

आदरणीय सर जी बहुत ही सुन्दर प्रेम कहानी बहुत ही रोचक कथा 👌जितना ज्यादा आपकी रचनाओं को पढ़ती हूँ उतना ह्रदय मे आपके लिए सम्मान बढ़ता जाता है आपको सादर नमन 🙏🙏आगे ke भागों का इन्तजार रहेगा

रीना कुमारी प्रजापत said

वाह बहुत खूबसूरत कहानी लगता है रजत एक नेक दिल इंसान है... अब उदास सी मुस्कान के बारे में और रजत के बारे में जानने की मन में बहुत उत्सुकता है कृपया अगला भाग जल्दी लेकर आइएगा... हमें इंतेज़ार है अगले भाग का.... बहुत सुंदर लिखा आपने👌👌👌🙏🙏🙏आपको सादर प्रणाम

श्रेयसी said

वाह बहुत सुंदर बहुत अच्छी शुरुआत की है आपने अच्छा लगा,सादर प्रणाम अशोक जी 🙏🙏

काल्पनिक रचनायें श्रेणी में अन्य रचनाऐं




लिखन्तु डॉट कॉम देगा आपको और आपकी रचनाओं को एक नया मुकाम - आप कविता, ग़ज़ल, शायरी, श्लोक, संस्कृत गीत, वास्तविक कहानियां, काल्पनिक कहानियां, कॉमिक्स, हाइकू कविता इत्यादि को हिंदी, संस्कृत, बांग्ला, उर्दू, इंग्लिश, सिंधी या अन्य किसी भाषा में भी likhantuofficial@gmail.com पर भेज सकते हैं।


लिखते रहिये, पढ़ते रहिये - लिखन्तु डॉट कॉम


LIKHANTU DOT COM © 2017 - 2025 लिखन्तु डॉट कॉम
Designed, Developed, Maintained & Powered By HTTPS://LETSWRITE.IN
Verified by:
Verified by Scam Adviser
   
Support Our Investors ABOUT US Feedback & Business रचना भेजें रजिस्टर लॉगिन