थोड़ी शर्मीली थोड़ी मुस्कान से भरी,
वो समझदार है या नासमझ कोई परी।
वो जब भी हॅंसती है बरखा फूलों की होती है,
वो रहती हमेशा प्यार मोहब्बत से हरी-हरी।
इस दुनियां से अनजान सी लगती है,
वो अपनी अलग ही दुनियां में खोई हुई रहती है।
कोई राब्ता नहीं उसका इस मतलबी दुनियां से,
वो तो बस यही कहती है।
अपनी एक छोटी सी प्यारी सी दुनियां को उसने
बनाया है,
जिसे उसने अपनी मंज़िलों को पाने के इरादे से
बसाया है।
हुनर उसका कुछ अजीब ही है,
उसी हुनर से उसने ख़ुद को सजाया है।
💐✍️ रीना कुमारी प्रजापत ✍️
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




