बीती हुई यादों के, धुंधले से ख़्वाब लिए बैठा हूं..
तुम्हारे खामोश सवालों के, ज़वाब लिए बैठा हूं..।
दिलों में अंधेरों का खौफ, अब बे–सबब है यारो..
हाथों में अपने जलता हुआ, आफ़ताब लिए बैठा हूं..।
मेरे हालात का, इतना भी न कोई मलाल करे यहां..
अपनी तकदीर के मुआफ़िक, अज़ाब लिए बैठा हूं..।
वो गिनवाते हैं अपना, हर एक एहसान–ए–कर्ज़..
खामोश हूं, कोई वक्त के लिए हिसाब लिए बैठा हूं..।
माना कि मेरे दिल की ज़मीं, ख़ुश्क ही नज़र आती है..
मगर पलकों में तो, अश्कों का सैलाब लिए बैठा हूं..।
पवन कुमार "क्षितिज"

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




