तुझ पर अब कहां मेरा, अख्तियार कोई..
तेरी यादों का सामाँ है, बस उधार कोई..।
ये आवारगी अब, रहने भी दीजिए जनाब..
क्या नहीं है कही, आपके घर–बार कोई..।
वो अब भी मिलते हैं, मगर वो शिद्दत कहां..
वक्त बदल गया या उनके दिल में है खार कोई..।
तुमने यकबयक क्यों छोड़ दिया दामन इस तरह..
तार–तार ही तो था, नहीं था दागदार कोई..।
आने नहीं आने का फैसला, वक्त रहते कर लीजिएगा..
यूं दिल की जुबां से नहीं, बुलाता है बार–बार कोई..।
पवन कुमार "क्षितिज"