सब्र कहाँ है जीवन में आपाधापी है
हर कोने में सब्र ढूंढना अच्छा लगता हैं...!
अंधेरे की तरह दबी सी पहचान है
गम़ और खुशी का संतुलन अच्छा लगता हैं...!
हावी हो जाती है बेसब्री कभी कभी
खुद नियम बनाकर खुद तोड़ना अच्छा लगता है...!
सब्र के लिए प्रेमानंद होना होगा
कठिन है मोह माया का बंधन, फिर भी अच्छा लगता है...!
राधा रही न रूकमणि ना कृष्ण ना बलभद्र
जीवन रूपी नाव का ये उतार चढ़ाव अच्छा लगता हैं...!
हर उपदेश में सब्र का फल भांति भांति के रूप लिए
राम कृष्ण शिव हरि हर रूप में फल अच्छा लगता हैं...!
मानसिंह सुथार©️®️