एक रोज गुजारा उस गाली से मै जब
थी तवायफ की भीड़ बहुत ही
सुन्दर चेहरे चंचल आंखे
कोमल होठ और प्यारी बातें
सब कुछ देख रहा था रस्ता
जिस्म की क़ीमत इतना सस्ता
हाथ पकड़ कर मेरा ओ खींची
डर से हाथ छुड़ाया मैंने अंधेरे में आंखे मिची
अपने बहुपास में पकड़ा उसने मुझको ऐसे जकड़ा
मेरा मन स्थिर हो गया जब
उसने पूछा कुछ करोगे क्या अब
गजरे की ओ मोहक खुशबु
उसके बालों से आ रही थी
जैसे ओ धीरे धीरे मुझको पास बुला रही थी
मन को दृढ़ बनाया मैंने खुद को फिर समझाया मैंने
खुद से दूर उसे फेंका मैंने
उसका चेहरा देखा मैंने
आंखो में अंशु थे उसके अच्छे घर की बेटी थी ओ
कोई दरिंदा छोड़ गया जो बिस्तर पर लेटी है ओ
पूछने पर बतलाती है
मैं अच्छे घर की बेटी हु
बाप की राजदुलारी हु भाई की की सबसे प्यारी हु
पर एक दरिंदे के कारण मै खुद को बेचने आई हु
इश्क किया था एक लड़के से
निभाया भी था सबसे लड़ के
तो भाग घर से उसके साथ इसी शहर में आई थी
मुझे क्या पता मेरी शामत खींच मुझको लाई थी
जब उसका मन भर गया मुझसे
जब उसने मन भर नोच लिया
तब इसी तवायफ के कोठे पर उसने मुझको बेच दिया