"एक औरत के जीवन की सच्चाई"
लड़की की जिंदगी आसान नहीं होती,
रिश्तों को अपने जोड़ के रखा
मन को चाहे तोड़ कर रखा,
हृदय में हजारों मारी ख्वाहिशें ।
जब हिसाब लगाने बैठी स्वंय को,
बिल्कुल खाली सा पाया हैं
एक घर को जोड़ने की खातिर,
एक घर से मुँह मोड़ कर रखा।
कौन कहता एक लड़की,
आसानी से खुश रह पाती है
प्रत्येक दिन उसे अपनों से ही,
नए-नए ताने मिलती हैं।
हर पल तथा हर दिन,
उसकी शिकायतें की जाती हैं
किसी को भी यह एहसास नहीं होता,
कि वह सबके लिए स्वयं को भूल गई है।
वो कहते हैं विवाह के बाद लड़की,
दो घर की लक्ष्मी बन जाती है
पर सत्य तो ये हैं,
वो अपनों के द्वारा ही, पराई कर दी जाती हैं।
जो वादें करता है उससे, साथ निभाने के,
वो ही, जब उसकी ना सुने
तब बिन कुछ कहें ही,
वो ये सब सह जाती है।
जीवन में उसने अपने,
सिर्फ संघर्ष ही पाया हैं
बेटी, बहन, पत्नी, बहु, माँ, भाभी,...
हर रिश्ता वो दिल से निभाती हैं।
कितना दर्द सहती है वो,
शायद ही कोई समझ पायेगा
नहीं सोचता कोई की,
वह आखिर, क्या करना चाहती हैं।
रचनाकार- पल्लवी श्रीवास्तव
ममरखा, अरेराज.. पूर्वी चंपारण (बिहार)