शारदा गुप्ता द्वारा लिखित यह कविता सामाजिक रूढ़ियों, स्त्री संघर्ष और नारी अस्मिता के विषय को केंद्र में रखती है। यह कविता न केवल सवाल उठाती है, बल्कि उन कड़वी सच्चाइयों को उजागर करती है, जिनका सामना स्त्रियों को बचपन से लेकर वृद्धावस्था तक करना पड़ता है। प्रश्नों के माध्यम से कविता का शिल्प इसे और भी प्रभावशाली बनाता है, क्योंकि यह पाठक को सोचने और आत्मविश्लेषण करने पर मजबूर करता है।
1. कविता की विषय-वस्तु और केंद्रीय विचार
कविता के माध्यम से कवि स्त्री जीवन की कठोर सच्चाइयों को उद्घाटित करता है। यह कविता नारी स्वतंत्रता, पितृसत्ता, समाज के दोहरे मापदंड, स्त्री अधिकारों की अनदेखी और संघर्ष पर आधारित है। इसमें भय, अन्याय, पीड़ा, संघर्ष और अंततः विजय का क्रमिक चित्रण है।
कवि ने कई प्रतीकों के माध्यम से यह दिखाया है कि समाज की असली विकृतियाँ प्राकृतिक आपदाओं, राजनीतिक षड्यंत्रों या युद्धों में नहीं, बल्कि स्त्रियों के प्रति समाज के रवैये में छिपी हैं।
2. कविता की संरचना और शिल्प
(क) प्रश्नात्मक शैली
कविता बार-बार “सबसे भयावह क्या है?”, “सबसे गहरी खाई कौन सी है?” जैसे प्रश्नों के माध्यम से पाठक को सोचने पर मजबूर करती है। यह शैली संवादात्मक और प्रभावशाली है, क्योंकि यह पाठक को केवल निष्कर्ष नहीं देती, बल्कि उसे खुद से उत्तर खोजने पर मजबूर करती है।
(ख) प्रतीकात्मकता
कवि ने प्राकृतिक आपदाओं, राजनीति, युद्ध, व्यापार और कड़वे अनुभवों को स्त्री जीवन के संघर्ष से जोड़कर दिखाया है।
• “अंधेरी रात, जंगल का सन्नाटा” → स्त्री के जीवन में असुरक्षा और भय
• “सबसे गहरी होती है वो खाई, जिसमें एक स्त्री के सपने गिरते हैं” → स्त्री की इच्छाओं और सपनों का दमन
• “सबसे जलती हुई होती हैं वो आँखें” → नारी की वेदना और उसकी घुटी हुई आवाज़
• “सबसे झूठा होता है वो प्रेम” → त्याग और समर्पण को ही प्रेम मानने की रूढ़ि
यह प्रतीक कविता को अधिक गहराई और मार्मिकता प्रदान करते हैं।
(ग) क्रमबद्ध विकास और भावनात्मक उत्कर्ष
कविता धीरे-धीरे डर, असुरक्षा, सामाजिक बंधनों, अन्याय, पीड़ा और अंततः विद्रोह और आत्मनिर्णय तक पहुँचती है।
1. स्त्री का भय (अकेले निकलने का डर, नज़रों की आग)
2. सपनों का दम घुटना (घर की चहारदीवारी में कैद)
3. त्याग और सेवा की विवशता (स्त्री का प्रेम और समर्पण)
4. आत्म-संदेह और असली घर की तलाश (पराया धन होने की पीड़ा)
5. स्थायी संघर्ष (हर स्त्री जन्म से ही संघर्षशील होती है)
6. अंततः स्त्री की विजय (“अब मैं अपने लिए जिऊँगी”)
3. कविता के प्रमुख विषय और विश्लेषण
(1) स्त्री और भय का मनोविज्ञान
“सबसे भयावह होती है वो परछाईं,
जो हर लड़की के साथ चलती है,
रात को अकेले बाहर निकलने पर,
बाजार में किसी की जलती नज़रों में,
या भीड़ में एक अनचाहा स्पर्श सहने पर।”
स्त्रियों का भय बाहरी नहीं, बल्कि उनके अपने समाज और संस्कृति से है।
• समाज ने उन्हें अकेले निकलने, स्वतंत्र सोचने और निर्णय लेने से पहले डरना सिखाया है।
• उनके लिए सबसे बड़ा खतरा भूकंप, तूफान या जंगल नहीं, बल्कि वही लोग हैं जो उनके आसपास रहते हैं।
• माँ-बाप भी इस डर को सिखाने के लिए बाध्य हैं, क्योंकि वे जानते हैं कि यह समाज एक लड़की के हौसले को बर्दाश्त नहीं करेगा।
(2) स्त्री की इच्छाओं का दमन
“सबसे गहरी होती है वो खाई,
जिसमें एक स्त्री के सपने गिरते हैं,
जब उसे कहा जाता है—
‘अब तुम्हारी दुनिया सिर्फ तुम्हारा घर है,
अब तुम्हारी पहचान सिर्फ तुम्हारा पति है।’”
यहाँ पितृसत्ता की जड़ें स्पष्ट होती हैं।
• स्त्री को बचपन से ही सिखाया जाता है कि उसकी पहचान किसी और से जुड़ी होगी।
• वह जो चाहती है, जो बनने का सपना देखती है, वह सब किसी “कर्तव्य” की बलि चढ़ जाता है।
• यह सिर्फ एक स्त्री का नहीं, हर स्त्री का सच है, जो पीढ़ी दर पीढ़ी दोहराया जाता है।
(3) स्त्री और प्रेम की रूढ़ियाँ
“सबसे झूठा होता है वो प्रेम,
जो सिर्फ स्त्री के समर्पण से सींचा जाता है,
जहाँ त्याग को ही सच्चे प्रेम की कसौटी माना जाता है।”
प्रेम का मतलब सिर्फ स्त्री का त्याग और बलिदान क्यों?
• समाज में प्रेम को सिर्फ स्त्री की सहनशीलता और समर्पण से मापा जाता है।
• यदि स्त्री अपने लिए कुछ चाहती है, तो उसे स्वार्थी और अनुचित माना जाता है।
• प्रेम का यह रूप एकतरफा और अनुचित है, जहाँ स्त्री को सिर्फ “देने” के लिए बनाया गया है।
(4) सबसे अजेय क्या है?
“सबसे अजेय होता है—
स्त्री का हौसला, उसकी जिद,
उसका खुद को हर बंधन से मुक्त करने का प्रयास।”
यह कविता का सबसे शक्तिशाली और क्रांतिकारी भाग है।
• स्त्री को केवल सहनशील और बलिदानी नहीं, बल्कि सशक्त रूप में प्रस्तुत किया गया है।
• वह अब सिर्फ समझौते करने वाली नहीं, बल्कि अपने अधिकारों के लिए लड़ने वाली है।
• स्त्री के इस हौसले को कोई नहीं हरा सकता, क्योंकि यह जन्मजात है।
4. कविता की प्रासंगिकता और प्रभाव
(1) यह सिर्फ एक कविता नहीं, एक आंदोलन है।
• यह कविता हर स्त्री की आवाज़ है, जो सदियों से दबाई गई है।
• यह स्त्रीवाद का सार है—जहाँ संघर्ष सिर्फ अधिकारों का नहीं, बल्कि अपनी पहचान और अस्तित्व की लड़ाई है।
• यह परंपरागत सोच को चुनौती देती है और समाज के दोगलेपन को उजागर करती है।
(2) यह कविता स्त्री मुक्ति की नई परिभाषा देती है।
• अब स्त्री सिर्फ “पराया धन” या “सेवा करने वाली” नहीं है।
• वह स्वयं अपने सपनों की मालिक है और अपनी पहचान खुद तय करेगी।
• यह कविता प्रेरणादायक भी है और चेतावनी भी—अब स्त्री चुप नहीं रहेगी।
5. निष्कर्ष: यह कविता क्यों यादगार और महत्वपूर्ण है?
• यह सामाजिक असमानताओं पर कठोर प्रहार करती है।
• यह प्रश्न उठाकर पाठक को सोचने और जागरूक करने पर मजबूर करती है।
• यह स्त्री को एक नई पहचान और शक्ति का अहसास कराती है।
यह कविता सिर्फ एक स्त्री की नहीं, बल्कि पूरे समाज की कहानी है। यह हर उस आवाज़ की कहानी है, जिसे चुप कराया गया, और हर उस हौसले की, जिसने कहा—“अब और नहीं!”

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




