[बाल कविता]
सबकी भूख मिटाती रोटी
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अम्मा रोज़ बनाती रोटी ।
सबकी भूख मिटाती रोटी ।।
सोंधी-सोंधी चूल्हे वाली,
सबके मन को भाती रोटी।
गाड़ी के पहिए सी मोटी,
हथपोई बन जाती रोटी।
धीरे-धीरे बेल-बेलकर,
दीदी गोल बनाती रोटी।
गेहूँ से बनता है आटा,
आटे से बन जाती रोटी ।
नहीं अनादर करो अन्न का,
सबको यह समझाती रोटी ।
दादी मेरी चटनी के संग ,
बड़े चाव से खाती रोटी ।
खाली कोई कभी न बैठे,
सबसे काम कराती रोटी ।
पेट किसी का खाली हो तो
अपने पास बुलाती रोटी।
हम बच्चों को बड़े प्यार से
काकी रोज़ खिलाती रोटी ।
पेट सभी का भर करके ही
सबको सदा सुलाती रोटी ।
करता जो अपमान हमेशा
उसको है तरसाती रोटी ।
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√ राम नरेश 'उज्ज्वल'