उस धारा में मै क्यूँ बहु ?
जिस धारा में तू नहीं
उस मंदिर मै क्यूँ जाऊँ ?
जिस मंदिर में तू नहीं
उस तीर्थ की यात्रा मै क्यूँ करू ?
जिस तीर्थ में तू नहीं
उस सत्संग में मै क्यूँ बैठु ?
जिस सत्संग में तू नहीं
उस कुंभ में मै क्यूँ नहाऊँ ?
जिस कुंभ में तू नहीं
तू नहीं है
ऐसी जगह नहीं
हे भगवंत...
फिर मै दरदर क्यूँ भटकू ?
✍️ प्रभाकर, मुंबई ✍️