इन हँसी लम्हों में तेरे नाम की बात।
इश्क है या सजा मरते नही ज़ज्बात।।
आवाजें कैसी क्या ईंटे बोलने लगी।
चमत्कार लगता या भ्रामक हुई रात।।
चुप्पी भली हवाओ की सरसराहट में।
कोई लग रहा या झाँक रही क़ायनात।।
सुरूर आने से पहले महक आने लगी।
जैसे कोई करीब में करता आत्मसात।।
रह गई जो साँस में वही है अब तक।
अन्दर कौंधती 'उपदेश' जिन्दा जात।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद