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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra The Flower of WordThe novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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The Flower of Word by Vedvyas MishraThe Flower of Word by Vedvyas Mishra
Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

Dastan-E-Shayara By Reena Kumari Prajapat

The novel 'Nevla' (The Mongoose), written by Vedvyas Mishra, presents a fierce character—Mangus Mama (Uncle Mongoose)—to highlight that the root cause of crime lies in the lack of willpower to properly uphold moral, judicial, and political systems...The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

                    

इश्क💝विश्क - कहानीकार वेदव्यास मिश्र

कहानी - इश्क💝विश्क
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कहानी - इश्क💝विश्क
विशाल —
एक हैंडसम, सलीकेदार, और हद से ज्यादा शर्मीला लड़का,
पोस्टमैन का बेटा...


माँ के हाथ की इस्त्री की गई पुरानी शर्ट और पिताजी के पसीने की गंध से सनी उम्मीदें लेकर,
कॉलिज में दाखिला मिला था—

मुश्किल से एक हफ्ता ही हुआ था क्लास शुरू हुए।

किताबें खरीदना फिलहाल मुमकिन नहीं था,
तो सोच लिया — "लाइब्रेरी से इशू करवा लेता हूँ।"

काउंटर पर जाकर जब रजिस्टर में नाम लिखा और जैसे ही पलटा...

एक नज़र में पूरी कायनात बदल गई।

सामने थी वर्षा,
लाइट ब्लू कुर्ती में, कंधे पर झूलता बैग, और आँखों में जैसे समंदर ठहर गया हो।

नज़रों से जैसे पहली बार कोई शेर उतर आया हो…
तुम्हें देखा तो लगा, जैसे वक़्त रुक सा गया है,<br>साँसें भी अब तेरे इर्द-गिर्द चलती हैं...
> "तुम्हें देखा तो लगा, जैसे वक़्त रुक सा गया है,
साँसें भी अब तेरे इर्द-गिर्द चलती हैं..."

वर्षा ने भी मुस्कराकर देखा,
और विशाल तो वहीं जम गया…
उसकी दुनिया की पहली किताब जैसे हाथ में नहीं,
दिल में दर्ज़ हो गई थी।

अब लाइब्रेरी एक मंदिर बन गई थी,
जहाँ वो रोज़ आता, बिना किसी किताब के भी,
बस एक झलक पाने के लिए।

धीरे-धीरे इशारे, मुस्कानें,
फिर किताबों के पीछे छुपे हुए पैग़ाम,
और एक दिन — लाइब्रेरी की चुप्पी में
शायरी की पहली पंक्तियाँ…

" ये बारिश भी कितनी अजीब है ना..
न जाने कितनी खूबसूरत यादें खुद में समेटे रहती है और भिगो जाती है अंदर रूह तक कहीं !!

कई महीनों तक
वर्षा उसकी प्रेरणा बनी रही,
मगर उसने कभी इज़हार नहीं किया।

फिर… एक दिन
वर्षा का अचानक लाइब्रेरी आना बंद…
और अगले सेमेस्टर में वर्षा ही गायब।

ना कोई अलविदा,
ना कोई वजह…
बस उसकी आखिरी मुस्कान रह गई थी,
जो अब विशाल की हर किताब में दर्ज़ है।

> "मैं पूछता रहा हर रास्ते से हर रोज..हर घड़ी..हर पल,
जो तेरे शहर को जाते थे...
मगर जवाब में बस ख़ामोशी थी,
जैसे तू कभी थी ही नहीं!"
🌎
लाइब्रेरियन कुछ बताता ही नहीं था !!
वर्षा एम.एस.सी प्रीवियस जुलाॅजी में थी और विशाल बी.एस सी ( बायो.) फर्स्ट इयर का स्टूडेंट था !!

प्यार भी अजीब है ना..ना तो उम्र देखता है..न कुछ और..बस प्यार हो जाता है !!

आज भी विशाल लाइब्रेरी में सबसे पहले आता है,
उसी कुर्सी पर बैठता है जहाँ अक्सर वर्षा बैठा करती थी।
विशाल अब सिर्फ किताबों को ही नहीं पढ़ता,
बल्कि उनके पन्नों में ढूँढता है कोई भूली हुई आहट… कोई प्यारी सी खिलखिलाहट..

> "कुछ मोहब्बतें मुकम्मल नहीं होती,
मगर अधूरी रहकर भी पूरी लगती हैं...
तू कहीं भी हो, मेरी दुआओं में अब भी शामिल है,
क्योंकि अधूरी मोहब्बतें कभी खत्म नहीं होती !!
🌎

एम.एससी. जूलॉजी, पहला दिन…

विशाल अपनी पुरानी आदत के मुताबिक सबसे आगे की सीट पर बैठा था।
उसे भी जुलाँजी से एम.एस सी करना रास आ रहा था !!
वजह, इसी बहाने वो क्लास रूम में वर्षा को महसूस करता था !!

एक हाथ में डायरी… दूसरा दिल के पास।

तभी…
दरवाज़ा खुला… और क्लास के भीतर वो दाख़िल हुई… जिसकी कल्पना विशाल सपने में भी नहीं कर सकता था !!

क्लास में प्रवेश कर चुकी थी..वर्षा मैडम।

साड़ी में वही ठहराव, वही मस्ती..वही मुस्कुराहट और आँखों में वही समंदर...वही प्यारा सा अंदाज..

मगर अब एक नज़ाकत, एक गुरूर, और एक अधूरा अतीत भी जुड़ा था उसकी अदाओं में !!

विशाल की आँखों में बिजली-सी चमकी,
पर कदमों ने ज़मीन छोड़ दी…
वो जैसे स्टेच्यू मोड में चला गया।
तू सामने हो… और मैं ख़ामोश रह जाऊँ,<br>ये इश्क़ की तौहीन होती है…<br>पर फिर भी तेरे रुतबे के आगे,<br>मोहब्बत भी अदब में खड़ी रहती है...

"तू सामने हो… और मैं ख़ामोश रह जाऊँ,
ये इश्क़ की तौहीन होती है…
पर फिर भी तेरे रुतबे के आगे,
मोहब्बत भी अदब में खड़ी रहती है..."

वर्षा की नज़र पड़ी विशाल पर —
एक झलक… थोड़ी हैरानी… थोड़ी मुस्कान...
क्लास शुरू हो चुकी थी, मगर
दिल में सवाल उठने लगे थे — "क्या ये वही विशाल है?"

क्लास ख़त्म होते ही…
वर्षा ने स्टाफरूम से एक पर्ची भिजवाई:

"विशाल, मिलना… लाइब्रेरी में।"

लाइब्रेरी का वही कोना…

सालों बाद फिर वहीं दोनों आमने-सामने थे।

कुछ देर सन्नाटा… फिर वर्षा ने ही पहला शब्द कहा:
"तुम वही हो न… जो किताबें नहीं, आँखों से पढ़ते थे?"

विशाल मुस्कराया और कहा कुछ नहीं…
बस उसकी आँखें भीग गईं।
रूँधे गले से बस इतना ही कहा..

"तुम्हारे जाने के बाद… किताबें अधूरी लगने लगी थीं।

मगर आज… जैसे कोई कहानी फिर से पूरी हो रही है।"

वर्षा ने बताया —
घर की हालत, ट्रांसफर, मजबूरी…
और फिर पढ़ाई पूरी कर कॉलेज में नियुक्ति।

"मैं भी अधूरी थी विशाल… शायद इसलिए लौट आई।"

अब विशाल की जुबां ने हिम्मत की…
"क्या... अब ये कहानी फिर से शुरू हो सकती है…?"

वर्षा ने हाथ बढ़ाया,
"कहानी नहीं… अब इसे मुक़द्दर कहते हैं।" तुम ही मेरे मुक़द्दर हो !!

अंतिम दृश्य: शादी के कार्ड पर लिखा था...

"विशाल ❤ वर्षा"

लाइब्रेरी से शुरू हुई मोहब्बत अब ज़िंदगी की किताब बन चुकी है।

"कुछ कहानियाँ रुकती हैं,
ताकि फिर से शुरू हो सकें...
और जब क़ुदरत लिखती है इश्क़,
तो अंत हमेशा मुकम्मल होता है।"


कुदरत को भी आपके पन्ने पलटने दीजिये ..वो भी आपकी किताब को खूबसूरत लिखना चाहता है..देखना चाहता है और पढ़ना भी !!

किसने सोचा था कि एक पोस्टमैन का लड़का एक अमीर लड़की से शादी करेगा !!

पढ़ाई का बहाव नदी के बहाव की तरह होता है जो किसी भी बंजर जमीन को उपजाऊ बना सकती है..बनाती भी है !! बस बहते रहिये नदी की तरह !!

- कहानीकार वेदव्यास मिश्र


यह रचना, रचनाकार के
सर्वाधिकार अधीन है


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

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रीना कुमारी प्रजापत said

वाह दिल को छू गई आपकी ये इश्क विश्क कहानी... लाजवाब बेमिसाल

वेदव्यास मिश्र said

रीना कुमारी प्रजापत जी,
आभार हृदयवंदन !! 🙏💝💝🙏

सुभाष कुमार यादव said

बहुत सुंदर कहानी। मजा आया पढ़कर।👌🙏

वेदव्यास मिश्र said

सुभाष कुमार यादव जी,
आभार नमस्कार 🙏🙏

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