मैं तो हूँ मेनुअल आदमी,
डिजीटल-विजीटल समझूँ ना !!
चाहत-वाहत को जानूँ मगर,
इससे जियादा कुछ समझूँ ना !!
हम तो हैं नज़रों के सिकंदर,
इससे जियादा समझ ही न आये !!
समझे है दुनिया हमको कलंदर,
अच्छा ही है सर कौन खपाये !!
भूख लगे तो खाना खाओ,
प्यास लगे तो मटका है ना !!
आज के ज़माने में लगभग,
सब कुछ डिजीटल हो गया है !!
रूपया डिजीटल..नमस्ते डिजीटल,
विशेज का अम्बार लगा है !!
पर ज़रूरत कुछ इनसे पड़े तो,
ठेंगा दिखाते हैं पल में क्यूँ हाँ ??
इक खूबसूरत सवाल वेदव्यास मिश्र की कलम से...
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




