आज रात किसी दूसरी ही दुनियां में थी,
बहुत गहरी मगर दर्दनाक नींद में थी।
उस गहरी नींद में एक डरावना सपना था,
जो अपनों से मुझे दूर कर रहा था।
डर था सीने में, घबराहट सातवें आसमान पर थी,
अपनों से बहुत दूर जो किसी जाल में फॅंसी थी।
लग रहा था अपनों से फिर कभी होगी नहीं मुलाक़ात,
अपनी आंखों से जो कलियुग का अंत देख रही थी।
धरती से लावा फट रहा था,
आसमाॅं आग उगल रहा था।
धुआं ही धुआं छाया था,
एक पल में कोई मौत में समाया था।
चारों तरफ चीखने चिल्लाने की आवाज़ें थी,
लग रहा था एक तरफ़ कुआं एक तरफ़ खाई थी।
मौत का ये मंज़र मुझे बहुत तड़पा रहा था,
तभी आंख खुली तो एक नया सवेरा मुझे बुला रहा था।
'''''''''रीना कुमारी प्रजापत ✍️ ✍️
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




