भारतीय सिनेमा के एक जाने माने अभिनेता मनोज वाजपायी जी जहाँ तहाँ रश्मिरथी पढ़ते दिखते हैं, उनको रश्मिरथी पढ़ते देख उनकी साहित्य में रूचि ज़ाहिर होती है। अवश्यमेव मैं उनकी कलाकारी का प्रशंशक हूँ - इसके साथ साथ उनको तरक्की की सीढिया चढ़ते देख मन प्रसन्न होता है - लेकिन इसके इतर जब बात उनके एक ब्रांड के प्रचार - प्रसार के बारे में आती है तब कहीं सोचना पड़ता है कि वाजपायी जी कहना क्या चाहते हैं - अमेज़ॉन फ्रेश ब्रांड के एक वीडियो में वह कहते हुए दिखाई देते हैं "ग्रोसरी सिर्फ अमेज़ॉन फ्रेश से नहीं तो मॅहगा पड़ेगा" - इस वाक्य को सुनने के पश्चात सर्वप्रथम यही सवाल उठता है कि अमेज़ॉन फ्रेश - "फ्रेश" कैसे हो सकता है? दूसरा सवाल उठता है कि ग्रोसरी हम जहाँ से लेते आये हैं वहीँ से लेंगे और अमेज़ॉन फ्रेश से नहीं लेंगे तो हमको मंहगा कैसे पड़ेगा?
कृष , जोधा अकबर जैसी फिल्मो में बहुत अच्छी भूमिका निभाने वाले अभिनेता ऋतिक रोशन को लगभग पिछले एक दशक से यही कहते सुन रहे हैं - डर के आगे जीत है। मुझे इस चीज़ का अनुभव नहीं है अवश्य ऐसा होगा लेकिन "माउंटेन डियू" का "डर के आगे जीत है" से क्या सम्बन्ध है? क्या माउंटेन डियू का सेवन करने से ही "डर के आगे जीत" संभव है? और यदि ऐसा है भी तो क्या वो सभी के लिए संभव है? यह सवाल इस लिए क्युकी मेने इसका सेवन बहुत किया है लेकिन आज तक जीत नहीं मिली उसके विपरीत शरीर में पीड़ा जरूर मिली - मेरे मामले में यह पीड़ा सर्दी खांसी ज्वर एवं गुर्दा से सम्बंधित है। और सच्चाई यह है यदि उनकी ये वीडियोज बचपन में देखि होती तो शायद उनके जैसे छत से उछल कूदने की कोशिश करता और शायद समस्या गंभीर हो सकती थी - कारण यह है कि वीडियो में चेतावनी इतनी छोटे शब्दों में लिखी होती है यदि कोई पढ़ना भी चाहे तो पढ़ न पाए उसके बाद भी कोशिश की जाये तो दो शब्दों को पढ़ने में ही उनका वीडियो ख़त्म होजाये ।
----अशोक कुमार पचौरी के विचार
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




