गुरु पूर्णिमा और शिक्षक दिवस
गुरु पूर्णिमा को स्वीकारें
या शिक्षक दिवस को अपनाएँ
दोनों ही जीवन को प्रकाशित करते हैं
कुछ पढ़ने में आया तो लगा कि
आज की छोटी सोच ने इन दोनों दिनों में भी भेद डाल दिया
अज्ञानता को ज्ञान का प्रकाश देने वालों को भी अज्ञानता की चादर से ढक दिया
शिक्षा को भी सनातन की लकीरों से बाँट दिया
एक हमें अध्यात्म से जोड़ता है
दूसरा जीवनयापन की दिशा दिखाता है
जब दोनों ही अभिवादन के योग्य हैं
तो क्यों कुछ लोग इन्हें संस्कृति से जोड़ते हैं ?
क्या ये वही लोग हैं ?
जिनके स्वयम् के बच्चों ने कभी तिलक,मौली नहीं लगाया होगा और कभी धर्म की राह भी नहीं गए होंगे
कोई उनको क्यों नहीं समझता ?
संस्कृति कोई भी हो उसकी शुरुआत अपने घर से ही होती है
तब ही उसे समाज अपनाता है
और श्रेष्ठता चाहे दिन की हो या व्यक्ति विशेष की
समाज के लिए उसका योगदान ही उसे सर्वश्रेष्ठ बनाता है..
वन्दना सूद
सर्वाधिकार अधीन है

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




