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कविता की खुँटी

                    

अल्फाज़

May 05, 2025 | डायरी | वन्दना सूद  |  👁 61,892

गर्मियों में पौधों को पानी देते देते ख़ुद भी भीग जाना और दूसरों को भी भिगो देना
बाल्टी भर कर आम भिगो देना और सबने मिलकर एक साथ खाना
दोपहर की भीषण गर्मी में कूलर चला कर तरबूज़ खाना
खाने के साथ कच्ची लस्सी , छाछ ज़रूर पीना
घर में करेले बनने पर मुँह बनाना
वहीं फालूदा आइसक्रीम को देख चेहरे पर ख़ुशी आना
कैरम ,लूडो,पिट्ठूग्राम,पतंग उड़ाना
क्या खूब मज़ा था इन सबमें
ऐसा बचपन कहीं खो गया
और साथ ही खो गया छोटी छोटी बातों में ख़ुशी ढूँढ लेना
आज बड़ी बड़ी खुशियों को पाने में ऐसा लगे कि
अपने आप को ख़ुश रखने का तरीका ही भूल गए ,ख़ुश रहना ही भूल गए ..
वन्दना सूद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (3)

+

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

Ji ekdam sahi kaha Adarneey Mam...Isame se kuch bhi pahle jesa nahi raha...aapne aaj fir se bachpan ki yaad dila di...aur ye bhi sach hai ki badi khushiyo ko paane ke evaj m choti khushiyan ko enjoy karna ham lagbhag bhool hi Gaye hain...Itane sare badlaav naa jane kab aur kese hogaye pata hi nahi chala, aur ab jab piche mudkar dekhte hain to afsos hota hai...

वन्दना सूद replied

सही कहा अशोक जी वक्त इतना तेज भागता है कि बीते खूबसूरत पल याद करने का भी वक्त नहीं देता

श्रेयसी said

वाह बचपन की यादें, बहुत ख़ूब 🙏🙏

वन्दना सूद replied

🙏😊

Supriya sahu said

बिल्कुल सही कहा आपने मैम, बहुत खूबसूरत रचना मैम 👌👌, आपको सादर प्रणाम 🙏🙏।

वन्दना सूद replied

🙏🙏😊

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