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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

गंगा कस गांव (छत्तीसगढ़ी)

गंगा कस गांव मोर
जमुना के धार
बारो महिना हे बहार
ब इला के घन-घन-घन-घन घंटी
सुन के मन झूम जाए
पिंवरा पिंवरा सरसों फूलय
महके अऊ महकाए
पीपर के छंइहा के महिमा अपार
बारो महिना हे बहार
सन सन सन सन गीत सुनाए
पवन चलय पुरवाई
गुरतुर -गुरतुर चिराई के बोली
ज इसे दूध मलाई
परबत ले निकलय कल-कल
नदिया के धार
बारो महिना हे बहार
पूरब के लाली ज इसन हे
ओढ़नी मोरे गांव के
झांझ मंजीरा झनके ज इसन
पैरी मोरे गांव के
नवा दुल्हनिया ज इसन
सोला सिंगार
बारो महिना हे बहार...…........


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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (9)

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सुप्रिया साहू said

वाह...बहुतेच खूबसूरत लिखे हवव अपमान गांव के सुंदर दृश्य ल पढ़के मजा आगे सर.., आइने सुग्घर सुग्घर कविता लावत राहव...जय जोहर, जय छत्तीसगढ़ मनोज सर🙏🙏।

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह भई! गाँव के हर कोना ला जिन्दा कर डारे हस। मन हर झूम उठिस।🙏🙏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

अड़बड़ मीठ मीठ लागीस आप मन के समीक्षा ह। आगे अऊ सुंदर रचना साझा करहूं। धन्यवाद! जय जोहार!!

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

अशोक जी, बहुत बहुत धन्यवाद!

सुभाष कुमार यादव said

अब्बड़ सुग्घर गीत, हमर छत्तीसगढ़ी भाखा म गाँव के अतेक सुंदर चित्रण । आप मन के रचना पढ़ के मन झूम गे। 👌👌🙏

सिद्धार्थ गोरखपुरी said

बहुत खूब

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

सुभाष जी, सिद्धार्थ जी हृदय से आभार, नमस्कार

वन्दना सूद said

ओढ़नी मोरे गांव के झांझ मंजीरा झनके ज इसन पैरी मोरे गांव के नवा दुल्हनिया ज इसन सोला सिंगार बारो महिना हे बहार.👌👌👏👏🙌🏻🙌🏻शानदार शानदार शानदार

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

वंदना जी मोर छत्तीसगढ़ी रचना ल अतका डूब के पढ़ेव अउ गुरतुर -गुरतुर समीक्षा लिखे हव। आप मन ला गाड़ा गाड़ा धन्यवाद देवत हंव,जय जोहार जोहार।

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