हम मध्यम वर्गीय वालों की सोच से जो परे है
अब उसी सोच को हम सब कस कर पकड़े हैं
मैं आसमांँ छू न पाई तो कोई मलाल नहीं
अब बच्चों को उड़ाने की ख़ातिर ज़िद पर अड़े हैं
जिसे कभी पंखुड़ियों पर चलाया था हमने
बड़े उद्देश्य के लिए चलने को कंकरियों पर छोड़े हैं
कोई साथ हो न हो परवाह नहीं है मगर
रब के द्वारे दोनों हाथ उठाए रहते रोज़ खड़े हैं