कभी सुर कभी संगीत तो कभी साज नहीं मिलते
कभी लय कभी आवाज कभी अंदाज नहीं मिलते
जब से मां ने फूलमाला पहनना शुरू कर दिया है
गम भुलाने को हमारे कहीं भी रिवाज़ नहीं मिलते
गज़लें लिखता है जिगर के लहू में कलम डुबोकर
तेरी दाद के लिए कभी सही अल्फाज नहीं मिलते
हसींनों के दिल में गहरे उतरके भी तो दीवानों को
बेवफाई के सीने में कितने दफन राज नहीं मिलते
यूं सच का झंडा उठाने वाले इंकलाबियों को दास
सूली ही मिलती है उन्हें तख़्त ओ ताज नहीं मिलते