यही तो दिक्कत है तुम्हारी तुम उर्दू को मुसलमाँ समझते हो।
पैदाइश है ये हिन्दुस्ताँ की तुम इसे गैरो की जुबाँ समझते हो।।
ये कौन सा बाजार है जहाँ इंसानो की तिजारत होती है।
बोली लगती है यहाँ आबरु की तुम आबरु को सामाँ समझते हो।।
कहाँ ढूढते हो तुम खुदा को इधर से उधर मस्जिद-ओ-मंदिर।
घर में ही है अक्स उसका जिसे तुम अपनी माँ कहते हो।।
ताज मोहम्मद
लखनऊ

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




