ज़िंदगी नाम बस इसी का है ,
लौट कर वक़्त फिर नहीं आता ।
पूंछ मत मुझसे अहमियत अपनी ,
तेरी यादों में सांस लेते हैं ।
ख़ुद को मसरूफ़ ऐसे रखते हैं ,
याद आती है याद करते हैं ।
मायूस इस कदर गम ए हालात ने किया ,
यादों में ज़िंदगी को सिमटा के रख दिया ।
याद करते हैं इस क़दर तुमको ,
भूल जाते हैं भूल जाना है ।
भूल बैठे हैं हम तुम्हें शायद ,
याद करने पे याद आते हो ।
याद करने पे याद करता है ,
तेरी फुर्सत की क्या ज़रूरत है ।
शामिल तेरी याद दिर में आदत सी रह गई ,
ख़ामोश सी नज़र में शिकायत सी रह गई।
----डाॅ फौज़िया नसीम शाद