"ग़ज़ल"
ढंग से कुछ कैसे मेरे यार चले!
बे-ढंगी जब ख़ुद अपनी ये सरकार चले!!
किसी भी काम का बेड़ा हरगिज़ पार न होगा!
घूस की जब तक कि न पतवार चले!!
बजाय डिग्रियों के काॅलिजों में रोटियाॅं बाॅंटें!
अपनी भी हुकूमत जो इक बार चले!!
कल तक जो था कई जघन्य अपराधों का दोषी!
किस शान से अब बन के थानेदार चले!!
दहेज़ रह गई है इक भारी बोझ बन कर!
उठा के डोली अब कैसे कॅंहार चले!!
या रब तेरी ये दुनिया तुझ को ही हो मुबारक!
हम तो तेरी दुनिया से बेज़ार चले!!
- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद
© Parvez Ahmad
The Meanings Of The Difficult Words:-
*जघन्य = अति निंदनीय (heinous); *बेज़ार = उकताया हुआ या ख़फ़ा या ना-ख़ुश (sick of or tired of or displeased).