हास्य -व्यंग्य
भरोसे की डोर टूटी
डॉ.एच सी विपिन कुमार जैन"विख्यात "
अंकी, इंकी, मंकी, टंकी, डंकी लाल,
जनता को लूट रहे, कर रहे हरदम बवाल।
कब क्या हो जाए किसके साथ, अब किसी का रहा भरोसा नहीं,
अब जिंदगी का कोई ठिकाना नहीं, हर पल है नई चुनौती कहीं।
जिस पर किया था विश्वास, वही निकला धोखेबाज,
अब दिल में डर बैठा है, कैसा ये है राज।
नेता हो या अधिकारी, सब एक ही थाली के,
अपनी ही धुन में रहते, न सुनते किसी की।
ईमानदारी का ढोंग रचाते, पर अंदर से हैं काले,
इनके झूठे वादों से, हम सब हैं बेहाल।
अपने फायदे के लिए, रिश्तों को भी तोड़ें,
जनता की परवाह नहीं, अपनी जेबें वो भरें।
ये कैसा दौर आया, जहाँ इंसानियत रो रही है,
भरोसे की डोर अब, टूटती जा रही है।
ये हास्य-व्यंग्य है उन पर, जो विश्वास तोड़ते हैं,
और जनता की भावनाओं से, खिलवाड़ करते हैं।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




