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The Flower of WordThe Flower of Word by Vedvyas Mishra

कविता की खुँटी

        

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Dastan-E-Shayra By Reena Kumari PrajapatDastan-E-Shayra By Reena Kumari Prajapat

कविता की खुँटी

                    

वो फ़ातिहा पढ़ने के बहाने नहीं आते

"ग़ज़ल"

वो फ़ातिहा पढ़ने के बहाने नहीं आते!
तुर्बत पे मिरी शम्अ जलाने नहीं आते!!

हर बात समझ लेते हैं ऑंखों से मिरी वो!
इन ऑंखों को जज़्बात छुपाने नहीं आते!!

माना कि हक़ीक़त में मोहब्बत नहीं हम से!
ख़्वाबों में भी वो प्यार जताने नहीं आते!!

हम लाख बुलाऍं भी तो सुनते हैं कहाॅं वो!
हम रूठ भी जाऍं तो मनाने नहीं आते!!

माना कि उन्हें प्यार निभाना नहीं आता!
पहले की तरह ज़ुल्म भी ढाने नहीं आते!!

जितने हैं सभी यार कमाने में लगे हैं!
मिलने के लिए दोस्त पुराने नहीं आते!!

'परवेज़' कभी वक़्त ने मुड़ कर नहीं देखा!
फिर लौट के वो दिन वो ज़माने नहीं आते!!

- आलम-ए-ग़ज़ल परवेज़ अहमद




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रचना के बारे में पाठकों की समीक्षाएं (4)

+

उपदेश कुमार शाक्यावार said

वाह क्या बात है...आपको सादर प्रणाम

सुभाष कुमार यादव said

बेहद खूबसूरत ग़ज़ल।👌👌👌

अशोक कुमार पचौरी 'आर्द्र' said

वाह! क्या लाजवाब ग़ज़ल है… हर शेर में दर्द और हकीकत का ऐसा संगम कि दिल तक उतर जाए! ❤️👏

मनोज कुमार सोनवानी "समदिल" said

हर बात समझ लेते आंखों से मेरी,इन आंखों को जज्बात छूपाने नहीं आते। वाह!! परवेज जी क्या खूब लिखा है आपने।🌹👌🙏

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राहगीर - चरनजीत कौर

Apr 14, 2024 | कविताएं - शायरी - ग़ज़ल | लिखन्तु - ऑफिसियल  | 👁 23,785
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