हम राह चले हमराह मिले , मंजिल तो अभी भी दूर खड़ी /
हम बढ़ते गये वो साथ रहे,
हम नूतन सपने गढ़ते गये /
हम उन सपनों को पाने को ,
हमराही को थे साथ लिये /
बस बढ़ते गए बस बढ़ते गए /
हम साथ रहे खूब ख्वाब गढ़े ,
मंजिल तो अभी भी दूर खड़ी /.
वो वादे अपने करते गये ,
हम उन सपनों में डूब गए /
वो कहते गए हम सुनते गए ,
एक संग जीवन को सोच लिया /
हम अतिसय प्रेम में डूब गये ,
सुध बुध अपनी हम भूल गये /
स्नेह नेह प्रिय का पा हम तो,
मंजिल दर मंजिल चढ़ते गए /
हम सपनों में युग्नध्द हुए ,
द्वैध की सीमा लांघ गए/
मंजिल तो अभी भी दूर खड़ी /
फिर एक दिवश ऐसा आया ,
वो मेरे सपने भूल गये /
हम बस उस दिन टूट गए,
मंजिल तो अभी भी दूर खड़ी /
एक पल को लगा सब ख़त्म हुआ ,.
न होश रहा रस्तो का कुछ /
अब मंजिल लगने लगी दूर,
मंजिल तो अभी भी दूर खड़ी /
फिर टूटन चटकन खूब हुई ,
वेदना भी भरपूर हुई /
रो रो के कटने रातें लगी ,
सबकी चुभने मुझे बातें लगी /
फिर नया जनम मेरा भी हुआ ,
अबकी ऊर्जा के साथ हुआ /
यह प्रसव पीड़ा भी मेरी थी ,
और जनम भी देखो मैने लिया /
एक पल में फिर मैं बड़ा हुआ ,
मंज़िल की तरफ़ मैं दौड़ पड़ा /
देखा मै तो पागल था ,
मंजिल कब मुझसे दूर खड़ी /
वो मिलन के मेरे प्यासी थी ,
वर्षों से मेरे लिए खड़ी ,
मंजिल कब मुझसे दूर खड़ी /
वो दूर खड़ी बस ताकती थी ,
कब एकरूप हो जाऊं मैं/
बस उसका ही हो जाऊं मैं,
देखो उसने मेरा वरण किया ,
सुन्दर परिधान अलंकरण किया ,
सबको मुझसे हैं दूर किया ,
फिर निज बाहों में समा लिया/
अपने आँचल में छुपा लिया ,
मुझको फूलों का हार दिया /
मंजिल ने जब स्वीकार किया /
वो कब मुझसे थी दूर खड़ी ,
मुझको ये अहसास दिया /.
-तेजप्रकाश पांडे