कभी ऐसा भी मंज़र आएगा जब तुम्हारी ही आवाज़ दरवाज़ों से टकरा कर वापिस तुम तक आएगी
कोई जवाब तुम्हारे कानों को नहीं सहलाएगा
कोई तुम्हारी आँखों में अपने लिए फ़ुर्सत के पल नहीं ढूँढेगा
तब वक़्त तुमसे ज़रूर पूछेगा कि वक़्त रहते ही क्यों नहीं पुकारा उन्हें
जवाब लौट कर आया होता अगर कभी अपने वक़्त से उनके लिए भी वक़्त माँग लिया होता..
वन्दना सूद
वक़्त रहते अपनों को पुकार लेना
क्योंकि गुज़रा हुआ वक़्त सपनों में भी सोने नहीं देता ..
वन्दना सूद