यह चुनौती को चुनौती है,
तू क्यों रास्ता रोक रही... हर बार मुझे क्यों टोक रही.
अब मैं वह करके दिखलाऊंगा...क्यों मुझको दुनिया कोस रही,
इन अंगारों के राहों पर अब मेरी मंज़िल बसती है,
अब मेरी मंज़िल बसती है,
यह चुनौती को चुनौती है,
कठिनाइयों की दीवारें हैं... जो यूं ही मुझको रोक रही,
अब यूं ना रुकने वाला में... मैं शायर और मतवाला मैं,
पागल हूँ मंजिल पाऊंगा... तू क्यों रास्ता रोक रही,
यह चुनौती को चुनौती है,
बारिश हो या बाढ़ हो अब ... चाहे कोई तूफान हो अब,
क्यूं तू जिद करके बैठी है... तू क्यूँ रास्ता रोक रही,
तू क्यूँ रास्ता रोक रही,
यह चुनौती को चुनौती है,
यह चुनौती को चुनौती है,
कवि राजू वर्मा.... 10 जुलाई 12:27 पूर्वाह्न पर प्रकाशित
सर्वाधिकार अधीन है