( कविता ) ( वृद्धाआश्रम )
पत्नी- तुमारे पिता पिछले साल मर गए।
चलो बहुत अच्छा कर गए ।।
उन्हें खिलाना पिलाना पड़ता था।
काम घर का मेरा बढ़ता था।।
मगर अभी भी घर में कवाड़ पड़ी है।
तुमारी मां सत्तर साल की बूढ़ी है।।
ये बुढ़िया बदसूरत काली है।
अभी ये कहां मरने वाली है।।
ये बुढ़िया तो सालों साल जिएगी।
बहुत खाएगी और पिएगी।।
इसकी सेवा कर कर के कष्ट ही कष्ट पाई हूं।
अरे मैं क्या बोलूं बहुत तंग आई हूं।।
पिंटू के पापा भिंडी हो की कद्दू हो।
अरे तुम भी.. यार कितने बुद्धू हो।।
तुमारी ये बूढ़ी मां के लिए एक टैक्सी मगाओ।
उसमें रख इसको वृद्धाआश्रम पहुंचाओ।।
इस बात पर बहुत उसने ध्यान दिया।
एक बेटा हो कर भी ये ऐसा मान लिया।।
कल सुबह बेटे ने ही एक टैक्सी मगाया।
घर के बाहर वह टैक्सी आया।।
बेटे ने मां के पास जा कर मम्मी मम्मी बुलाया।
उसने फिर उनको बिस्तर से उठाया।।
हथेली में पकड़ कर।
चलो मम्मी बोल कर।।
टैक्सी के अंदर सीट पर बैठाया।
खुद बैठ अपनी मां को वृद्धाआश्रम पहुंचाया।।
फिर बोला ,आप की बहू और मेरा ये कहना है।
अब मम्मी तुमें यहीं वृद्धाआश्रम में रहना है।।
आस पास वृद्धाआश्रम दो चार इकट्ठे पड़े हैं।
तूमारे सेवा के लिए बहुत लोग खड़े हैं।।
टैक्सी से जल्दी जल्दी उतर जाओ।
अब हमेशा तुम यहीं पियो यहीं खाओ।।
ऐसा बोल बेटे ने छोड़ दिया।
दिल मां का बुरी तरह तोड़ दिया।।
बेटा भी कैसा दो हाथ मलता बना।
टैक्सी में बैठ कर चलता बना।।
जब तक टैक्सी ओझल न हुवा
वह देख दुखी होती रही।
सत्तर साल की बूढ़ी मां
सुबक सुबक रोती रही।।
सुबक सुबक रोती रही.......