समुद्र मंथन का समय था भारी,
देव-असुर में छिड़ी थी लड़ाई सारी।
अमृत पाने को था संघर्ष अपार,
तब प्रकट हुए प्रभु कूर्म अवतार।
कच्छप रूप में धरती संभाली,
मंदराचल पर्वत को पीठ पर डाली।
मंथन के आधार बने अचल,
धैर्य बना उनका सबसे बड़ा बल।
वासुकी नाग बना मंथन की डोरी,
देव-असुर दोनों ने थामी पूरी।
कभी खिंचाव, कभी संतुलन का भार,
हर क्षण में था संघर्ष अपार।
विष निकला पहले, कालकूट घातक,
हर दिशा में उठा प्रलय-सा आघात।
संकट जब बढ़ा सृष्टि के ऊपर,
तो शिव ने पी ली ज्वाला ज़हर की भीतर।
नीलकंठ बनकर विष को पीया,
त्याग का अद्भुत उदाहरण दिया।
और फिर क्रम से रत्न निकले,
कल्याण के दीप जग में बिखरे।
धैर्य, सेवा, संतुलन का सार,
था प्रभु कूर्म का अवतार।
वो न रुके, न बोले, न दिखी कोई पीड़ा,
शांत रहकर उठाया सृष्टि का भार,
सेवा बनी जिनका जीवन आधार।
बिन कहे रच डाली सृष्टि की नींव,
निःस्वार्थ सेवा का अमिट विचार।
सब भार उठाया बिना कोई शोर,
आज भी बनें प्रेरणा का स्रोत।
जब-जब जीवन डगमगाए,
धैर्य की राह वही दिखलाए।
जो झुके समाज के हित में,
वो ही सच्चा वीर कहलाए।
कूर्म अवतार हमें सिखाए,
कि धैर्य से ही जीवन मुस्काए।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




