मेरा झोंपड़ा जलाने वाले,
तू क्यूं जल रहा है।
मेरी सूरत देखकर,
तेरा चेहरा क्यूं खिल रहा है।
मुझे मिले तो,
हमेशा अपनों की तरह।
गैरों से मिलकर,
मेरे ही राज उगलने लगे।
मुझे नहीं मालूम,
इन आग की लपटों में तू कैसे घिर गया।
हाल हुआ ऐसा,
जीते जी तू मर गया।
फन फैलाए विषधर बने तुम,
सजे संवरे यमराज बने तुम।
अफसोस कि आज ऐ!"विख्यात"
अपनी ही जिंदगी के मोहताज बने तुम।

The Flower of Word by Vedvyas Mishra
The novel 'Nevla' (The Mongoose) by Vedvyas Mishra



The Flower of Word by Vedvyas Mishra




