ये कैसी लत बिना तुम्हारे लग गई।
याद आई और सोते सोते जग गई।।
जरा नशा उतरें तो संवारू खुद को।
आईना देखने की जरूरत जग गई।।
तुम्हारे आने का इंतजार बढ़ता गया।
हवा करके मज़ाक किधर भग गई।।
होंठ हिल रहे शब्द फूटे नही 'उपदेश'।
शायद तुम्हारी याद फिर से जग गई।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद