मधुर सोच मन कामना करती देखी विस्तार।
सुख सुविधा की हाय ही बेवजह बढ़ाती रार।।
पल पल जीना आता नही उलझे रहते काज।
पुरुषार्थ के बल से सम्भव निर्बल मन की हार।।
मिथ्याभाषी को फ़िक्र नही रिश्तों का गणित।
आडम्बर की रोशनी ही व्यथित करती संसार।।
कली पुष्प जब बन गई फिर कैसा मधुमास।
रंग बहारो में लुट गया धोखा कहती आकार।।
युवा भविष्य की गोद में खोज रहा अरमान।
वर्तमान सुख-धाम 'उपदेश' बरसाती आधार।।
- उपदेश कुमार शाक्यावार 'उपदेश'
गाजियाबाद