याद हैं कि याद बिन भी रह नहीं सकते
पर उदासी के मंजर भी अच्छे नहीं लगते
टूटे हुए हैं दोनों दिल ये जान साथ साथ
जिस्म को पुराने जख्म अच्छे नहीं लगते
याद के चश्मे वहां तक लेके जायेंगे हम
जहां कि धूप के खंजर अच्छे नहीं लगते
मुहब्बत करना भी गुनाह है संगीन बहुत
शहर के हाथ हों पत्थर अच्छे नहीं लगते
उन्हें गजल सुनाने का अरमान रह गया है
दास हमें अपने ये अक्षर अच्छे नहीं लगते।