मिडिल क्लास आदमी की अजीब दास्तान है।
बीच बाज़ार खड़ा हताश परेशान है।
सस्ता लूं तो पड़ोसी क्या कहेंगे।
अगर महंगा लिया तो घर वाले ना छोड़ेंगे।
ना इधर के ना उधर के बीच में लटकें हैं।
जेबें टटोलें तो खाली चिल्लर पड़ें हैं।
अपनें अंतरद्वंद में चल रहा युद्ध घमासान है।
मिडिल क्लास आदमी की अजीब दास्तान है....
एक छोटी नौकरी एक छोटा सा मकान है।
कभी कोई कुछ मांग ना दे इसलिए जीव
हलकान है।
ऊंची है बिल्डिंग पर फिंका पकवान है।
मिडिल क्लास आदमी की अजीब दास्तान है..
खाए गा तो पढ़ेगा क्या ।
और पढ़ लिया तो करे गा क्या ।
बाप दादाओं की पुरानी बची खुची
इज़्ज़त झूठी शान है।
आगे इसे बढ़ाने की अब सभी निगाहें
तू हीं तो परिवार का अभिमान है।
पढ़ने लिखने की शुरू से दबाव है..
मिडिल क्लास आदमी की अजीब दास्तान है...
कोल्हू के बैल जैसे जीवन में पेराई हो रही है।
ना कुछ किया तो जग में हसाई हो रही है।
सोसायटी मेंटेन के लिए बैंकों का लोन ढो रहा है।
पूरी जिंदगी ई एम आई में काट रहा है।
घर में बीबी बच्चें बूढ़े मां बाप बैठी
बहन शादी लायक जवान है।
मिडिल क्लास आदमी की अजीब दास्तान है...
सस्ता एक्सेप्ट नहीं महंगा एफोर्ड नहीं
खींच रहा जैसे तैसे गाड़ी जिंदगी की
बिना उफ किए मिडिल क्लास का हरेक
इंसान है ..
ना इधर के ना उधर के
अजीब दास्तान है...
मिडिल क्लास आदमी की अजीब दास्तान है....
मिडिल क्लास आदमी सबसे ज्यादा परेशान है..
मिडिल क्लास आदमी सबसे ज्यादा परेशान है....