क़त्ल तो हमारा हुआ तुम्हें क्या खबर,
तुम्हें तो नींद आ रही थी हमें क्या खबर।।
बाजी हाथ से छूटती जा रही थी
तुम्हें क्या खबर,
तुम्हें तो सपने आ रहे थे हमें क्या खबर।।
साजिशें चुभती जा रही थी तुम्हें क्या खबर,
तुम्हें तो किनारे खींचें जा रहे थे हमें क्या खबर।।
- ललित दाधीच।।